2 मिनट पहलेलेखक: इंद्रभूषण मिश्र
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साल 1983, घने जंगलों के बीच बसे आदिवासी गांव की एक महिला सिंचाई विभाग में क्लर्क थीं और उनके पति प्राइवेट बैंक में जॉब करते थे। दोनों की नौकरी अलग-अलग राज्यों में थी। इसलिए नौकरी के साथ-साथ 3 साल की बेटी की देखभाल करना महिला के लिए मुश्किल काम था।
एक रोज निमोनिया से बेटी की जान चली गई। ससुराल वाले महिला पर लगातार नौकरी छोड़ने का दबाव बना रहे थे। आखिरकार महिला ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और पति के साथ रहने लगी।
27 साल बाद यानी 25 अक्टूबर 2010 की बात है। उस महिला का बड़ा बेटा रात को पार्टी से लौटा, सुबह उसकी तबीयत बिगड़ गई। अस्पताल पहुंचते-पहुंचते उसने दम तोड़ दिया। करीब ढाई साल बाद जनवरी 2013 में महिला का छोटा बेटा भी सड़क हादसे में गुजर गया। कुछ महीने बाद उनकी मां और भाई भी चल बसे। 19 महीने बाद यानी अगस्त 2014 में महिला के पति की मौत हो गई।
चार साल के भीतर पांच मौतें। महिला डिप्रेशन में चली गईं, लेकिन आठ साल बाद यानी 25 जुलाई 2022 को वो महिला भारत के सबसे ऊंचे पद पर पहुंचीं। नाम द्रौपदी मुर्मू।
आज महिला दिवस पर कहानी देश की पहली महिला द्रौपदी मुर्मू की…

25 जुलाई 2022, दिल्ली में राष्ट्रपति पद की शपथ लेती हुईं द्रौपदी मुर्मू।
ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर गांव है उपरबेड़ा। घने जंगलों के बीच बसे इस गांव की आबादी करीब 3 हजार होगी। 1958 की बात है। उपरबेड़ा और आसपास के इलाकों में मानसून ने दस्तक दे दी थी, लेकिन वहां कई दिनों से बारिश नहीं हो रही थी।
संथाली परंपरा के मुताबिक बारिश के लिए बिरंची नारायण ने घर के पिछवाड़े बरगद के पेड़ के नीचे एक मिट्टी का बर्तन रखा। स्थानीय लोग उसे पुति कहते हैं। पुति रखने के ठीक एक हफ्ते बाद 20 जून 1958 को बिरंची टुडू को एक बेटी हुई। संयोग से बच्ची के जन्म के बाद इलाके में बारिश भी होने लगी। एक साथ बिरंची को दोहरी खुशी मिली। उन्होंने बेटी का नाम रखा पुति।
एक इंटरव्यू में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बताती हैं- ‘संथाली परिवार में बेटी का नाम दादी के नाम पर रखा जाता है, ताकि दादी के मरने पर भी उनका नाम जिंदा रहे। इसलिए मेरा एक नाम दुर्गी भी था, लेकिन ये नाम मेरे शिक्षक को पसंद नहीं था, तो उन्होंने मेरा नाम द्रौपदी रख दिया।’

ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में बना ये घर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का है।
बारिश की वजह से प्रिंसिपल छुट्टी करने वाले थे, द्रौपदी नदी तैरकर स्कूल पहुंच गईं
ओडिशा के सीनियर जर्नलिस्ट संदीप साहू अपनी किताब ‘मैडम प्रेसिडेंट’ में लिखते हैं- ‘सत्तर के दशक की बात है। एक रोज जमकर बारिश हो रही थी। दूर-दूर तक सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा था। स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षक बासुदेव बेहरा स्कूल में छुट्टी घोषित करने के बारे में सोच रहे थे। उन्हें लग रहा था कि इतनी बारिश में कोई स्कूल नहीं आ पाएगा।
थोड़ी देर बाद उनकी नजर 7-8 साल की द्रौपदी पर पड़ी। वह पूरी तरह भीग गई थी, लेकिन उसने अपना बैग भीगने नहीं दिया था। बासुदेव ने पूछा- इतनी बारिश में तुम स्कूल कैसे आ गई? द्रौपदी ने जवाब दिया- ‘मैं नदी तैरकर आई हूं।’ उसका जज्बा देखकर बासुदेव और स्कूल के प्रिंसिपल दंग रह गए।’
संदीप साहू लिखते हैं- ‘द्रौपदी का बचपन तंगहाली में गुजरा। उनके पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इसलिए वह नंगे पांव स्कूल जाती थीं। पूरे साल उन्हें सिर्फ दो जोड़ी कपड़े में गुजारा करना पड़ता था।

उपरबेड़ा में द्रौपदी मुर्मू का पैतृक घर।
वो कपड़ों को बारी-बारी से धोकर अपना काम चलाती थीं। रोजाना सुबह उठकर बर्तन धोना, फर्श की सफाई करना, कुएं से पानी निकालना, गौशाला की सफाई करना जैसे काम निपटाने के बाद वो स्कूल जाती थीं।
उस दौरान गांवों में चावल से भूसी निकालने के लिए लकड़ी के लीवर का इस्तेमाल किया जाता था। द्रौपदी की दादी उन्हें सुबह चार बजे ही जगा देती थीं। द्रौपदी, दादी के साथ मिलकर चावल से भूसी निकालती थीं। उनकी दादी कहती थीं- ‘द्रौपदी, तुम्हें क्या लगता है कि पढ़ लिखकर तुम स्वर्ग पहुंच जाओगी।’
वह द्रौपदी को ढिबरी जलाने पर भी डांटती थीं। कहती थीं- तुम स्कूल क्या करने जाते हो, वहां क्यों नहीं पढ़ती हो, पता है केरोसीन कितना महंगा है।
द्रौपदी के पिता के पास उनके लिए नई किताबें खरीदने के पैसे नहीं होते थे। वे कक्षा कर चुके बच्चों के पिता से द्रौपदी के लिए किताबें मांगते थे। द्रौपदी उन किताबों को गोंद से चिपकाकर पढ़ती थीं। गोंद नहीं मिलता था, तो चावल उबालकर उससे किताबें चिपकातीं थीं।’

7 दिसंबर 2024, राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू उपरबेड़ा राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय पहुंची थीं। इसी स्कूल से उन्होंने शुरुआती पढ़ाई की है।
द्रौपदी को बचपन से झुकना पसंद नहीं, अपनी सरकार का बिल भी लौटा दिया
द्रौपदी बचपन से ही सच के साथ मजबूती से खड़ी रही हैं। एक किस्सा याद करते हुए मुर्मू को पढ़ाने वाले बासुदेव बेहरा कहते हैं, ‘वो क्लास टॉपर थीं। हमेशा सबसे ज्यादा नंबर उन्हीं के आते थे। नियम के मुताबिक मॉनिटर उन्हें ही बनना चाहिए था, लेकिन क्लास में लड़कियों की संख्या काफी कम थी। 40 छात्रों में सिर्फ 8 लड़कियां थीं।
लड़के नहीं चाहते ते कि द्रौपदी मॉनिटर बनें। हमारे मन में भी शंका थी कि लड़की होकर वो पूरे क्लास को कैसे संभालेंगी, लेकिन द्रौपदी अड़ गईं। उन्होंने मुझसे पूछा- ‘क्या मैं मॉनिटर नहीं बन सकती।’ इस पर मैंने कहा कि तुम मॉनिटर बन सकती हो। तुम जरूर बनोगी। और फिर द्रौपदी मॉनिटर बन गई।’
राजनीति में आने के बाद भी इसकी बानगी देखने को मिली। 2017 की बात है, तब द्रौपदी झारखंड की राज्यपाल थीं। बीजेपी सरकार सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक लेकर आई थीं। आदिवासी इसका विरोध कर रहे थे। इस कानून के लागू होने के बाद आदिवासियों की जमीनों का व्यवसायिक कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। मुर्मू ने उस विधेयक को वापस कर दिया।
अचानक मंच पर चढ़ीं, मंत्री से कहा- मेरा दाखिला भुवनेश्वर में कराइए
संदीप साहू अपनी किताब मैडम प्रेसिडेंट में लिखते हैं- ‘हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए उपरबेड़ा के लड़के-लड़कियों को 10 किलोमीटर दूर बादामपहाड़ गांव जाना पड़ता था।
एक दिन द्रौपदी को पता चला कि ओडिशा सरकार के मंत्री कार्तिक माझी रायरंगपुर में एक बैठक को संबोधित करने आ रहे हैं। द्रौपदी ने पिता से कहा कि वो भी इस सभा में जाएंगी। पहले उनके पिता तैयार नहीं हुए, लेकिन फिर उनकी जिद के बाद मान गए।
बैठक में मंत्री माझी अपना भाषण खत्म करने ही वाले थे कि द्रौपदी तेज कदमों से मंच पर पहुंच गईं। उनके पिता हैरान रह गए कि ये कहां जा रही। द्रौपदी ने सभी के सामने अपनी सातवीं कक्षा की मार्कशीट लहराते हुए मंत्री की तरफ मुड़कर कहा- ‘मैं आगे की पढ़ाई भुवनेश्वर में करना चाहती हूं। वहां दाखिला कराने में मेरी मदद करें।
उस दौर में लड़कियों का घर से बाहर निकलना ही बड़ी बात होती थी। तब 11-12 साल की द्रौपदी का मंच पर चढ़कर अपने अधिकारों की मांग करना बड़ी बात थी।
द्रौपदी की बात सुनकर मंत्री खुश भी हुए और हैरान भी। फिर उन्होंने अपने कर्मचारियों से कहा कि इसके दाखिले की व्यवस्था की जाए। थोड़े दिनों बाद भुवनेश्वर में यूनिट 2 गर्ल्स हाई स्कूल में मुर्मू का दाखिला करा दिया गया।’

द्रौपदी मुर्मू (पीछे से सबसे दाएं) के कॉलेज के दिनों की तस्वीर।
महीने के खर्च के लिए 10 रुपए मिलते थे, पैसे बचाने के लिए कभी कैंटीन नहीं गईं द्रौपदी
संदीप साहू लिखते हैं- ‘द्रौपदी का दाखिला भुवनेश्वर में हो तो गया, लेकिन आर्थिक मुश्किलें उनका पीछा नहीं छोड़ रही थीं। उनके पिता महीने के खर्च के लिए महज 10 रुपए भेजते थे। पैसे बचाने के लिए द्रौपदी स्कूल के चार सालों में एक बार भी कैंटीन नहीं गईं।
द्रौपदी पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी गतिविधियों में भी भाग लेती थीं। एक बार उनका सिलेक्शन दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड के लिए हुआ था। तब दिल्ली आने-जाने में 60 रुपए का खर्च था। द्रौपदी ये रकम भी नहीं जुटा पाईं। वो गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं हो पाईं।
द्रौपदी, ग्रेजुएशन करने के साथ-साथ सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही थीं। उन दिनों राज्य सरकार ने आदिवासी छात्रों के लिए विशेष भर्ती अभियान शुरू किया था। द्रौपदी ने भी इसके लिए अप्लाई कर दिया। फाइनल ईयर का रिजल्ट आने से पहले 1979 में उनका सिलेक्शन भी हो गया। सिंचाई विभाग में वो क्लर्क बन गईं।’
द्रौपदी ने प्रेम विवाह किया, दहेज में मिले- ‘एक गाय, बैल और 16 जोड़ी कपड़े’
डेल्हा, द्रौपदी की क्लासमेट रही हैं। वो द्रौपदी की शादी का किस्सा याद करते हुए बताती हैं- मयूरभंज जिले में ही पहाड़पुर गांव है। उसी गांव के रहने वाले श्याम चरण मुर्मू पुरी में एक दफ्तर में एकाउंटेंट थे। अक्सर काम के सिलसिले में वे भुवनेश्वर आते-जाते थे। उसी दौरान उनकी मुलाकात द्रौपदी से हुई।
श्याम, द्रौपदी को पसंद करते थे। एक रोज उन्होंने मुझसे कहा कि वो द्रौपदी के सामने शादी का प्रस्ताव रखना चाहते हैं। मैंने उनकी बात द्रौपदी तक पहुंचाई। थोड़ा-बहुत विरोध के बाद दोनों के परिवार वाले शादी के लिए मान गए।
अब शादी तो पक्की हो गई, लेकिन दहेज तय होना बाकी था। आदिवासियों में लड़के के घर वाले ही रिश्ता लेकर जाते हैं। दहेज में तय हुआ एक गाय, बैल और 16 जोड़ी कपड़े। श्याम ने बिना समय गंवाए हां कर दी। और फिर रिश्तेदारों के साथ अपने गांव लौट गए। कुछ दिन बाद श्याम से द्रौपदी का विवाह हो गया।

द्रौपदी मुर्मू अपने पति श्याम चरण मुर्मू के साथ। उनके पति बैंक में जॉब करते थे।
निमोनिया से 3 साल की बेटी की मौत, मजबूरन द्रौपदी को सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ी
शादी के बाद द्रौपदी पति के साथ भुवनेश्वर में शास्त्री नगर इलाके में किराए पर रहने लगीं। एक साल बाद दोनों को बेटी हुई। उन्होंने उसका नाम ‘बड़ा मामा’ रखा। इसी दौरान उनके पति ने पुरानी नौकरी छोड़कर एक प्राइवेट बैंक जॉइन कर लिया। पति को नई नौकरी के लिए झारखंड जाना पड़ता था।
नौकरी के साथ-साथ द्रौपदी के लिए बेटी की देखभाल करना मुश्किल टास्क था। ससुराल वाले उन पर पति के साथ रहने के लिए दबाव बनाते थे। 1983 में निमोनिया से द्रौपदी की बेटी की मौत हो गई। मजबूरन उन्हें सरकारी नौकरी छोड़नी पड़ी। वे अपने पति के साथ झारखंड रहने लगीं।
इसी बीच मुर्मू को तीन बच्चे हुए, दो बेटा और एक बेटी। कुछ साल बाद वो रायरंगपुर लौट आईं। धीरे-धीरे उनके बच्चे बड़े होते गए और स्कूल जाने लगे। अब द्रौपदी के पास खाली वक्त रहने लगा। रायरंगपुर में रहते हुए उन्हें 10 साल हो गए थे।
1994 की बात है। द्रौपदी को श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में पढ़ाने का ऑफर मिला। स्कूल में पढ़ाने के लिए वो तैयार तो हो गईं, लेकिन स्कूल मैनेजमेंट के सामने एक शर्त भी रख दी। शर्त ये कि वह वेतन नहीं लेंगी।

तस्वीर में पीछे खड़ीं मुर्मू मंद-मंद मुस्कुरा रही हैं। राजनीति में आने से पहले वे रायरंगपुर में स्कूल में टीचर थीं। वे पढ़ाने के लिए कोई सैलरी नहीं लेती थीं।
बीजेपी की तरफ से द्रौपदी को चुनाव लड़ने का ऑफर मिला, पति ने कहा- टीचर बन गईं बहुत है
1997 की बात है। रायरंगपुर में पार्षद के चुनाव होने थे। बीजेपी अब तक ओडिशा में अपनी पहचान नहीं बना पाई थी। वह वार्ड संख्या-2 के लिए एक उम्मीदवार तलाश रही थी। यह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित थी। द्रौपदी, जिस संथाल समाज से आती हैं, उस सीट पर उस समाज का काफी प्रभाव था। लिहाजा द्रौपदी, बीजेपी के लिए सबसे मुफीद उम्मीदवार थीं। उन्हें सरकारी काम करने का अनुभव भी था।
रवींद्र महंत तब बीजेपी के जिलाध्यक्ष थे। उनका घर द्रौपदी के स्कूल के ठीक बगल में था। ऐसे में यह स्वाभाविक था कि महंत के घर आने-जाने वाले लगभग सभी स्थानीय नेता द्रौपदी को पहचानते थे। राजकिशोर दास, जो नगर पंचायत अध्यक्ष थे, उन्होंने सबसे पहले द्रौपदी को एक शिक्षक के जरिए पार्टी में शामिल होने और चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भेजा, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।
तब बीजेपी नेताओं ने उनके पति श्यामा चरण मुर्मू से संपर्क किया। श्यामा बैंक में मैनेजर थे। श्याम ने कहा, ‘यह राजनीति हमारे लिए नहीं। हम छोटे लोग हैं। औरतों के लिए तो बिल्कुल भी ठीक नहीं।’
पर बीजेपी नेता उन्हें मनाने के लिए अड़े रहे। आखिरकार वे तैयार हो गए। द्रौपदी चुनाव लड़ीं और जीत भी गईं। यहां से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। बाद में द्रौपदी विधायक बनीं और ओडिशा सरकार में मंत्री भी।

भाई और मां के साथ द्रौपदी मुर्मू। 2013 में उनके भाई और मां का निधन हो गया था।
बड़े बेटे की मौत के बाद डिप्रेशन में चली गई थीं द्रौपदी, फिर पति का भी साथ छूट गया
25 अक्टूबर 2010 की बात है। द्रौपदी के बड़े बेटे लक्ष्मण एक पार्टी से लौटे। वे भुवनेश्वर में अपने चाचा के साथ रहते थे। अगली सुबह बीमार हालत में लक्ष्मण को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। तब लक्ष्मण की उम्र महज 25 साल थी।
संदीप साहू लिखते हैं- ‘जवान बेटे की मौत से द्रौपदी टूट गईं। जीने की लालसा खत्म हो गई थी। उन्होंने खुद को अंधेरे कमरे में बंद कर लिया। कहीं आती-जाती नहीं थीं। उन्हें लगता था कि सबकुछ खत्म हो गया। बाद में वो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़ीं। यहां वो नियमित रूप से ध्यान लगाने आने लगीं। धीरे-धीरे वो अपने दुखों से उबर रही थीं। तभी जनवरी 2013 में उनके छोटे बेटे सिपुन की सड़क हादसे में जान चली गई।
तब सिपुन की पत्नी प्रेग्नेंट थीं। उनका गर्भपात हो गया। द्रौपदी के न चाहते हुए भी सिपुन की पत्नी को उनके परिवारवाले अपने साथ ले गए। द्रौपदी का घर खाली-खाली सा हो गया।
द्रौपदी के कॉलेज दिनों की साथी सुरमा पाढ़ी ‘मैडम प्रेसिडेंट’ किताब में बताती हैं- सिपुन की मौत के बाद परिवार के सभी लोग रो रहे थे, लेकिन द्रौपदी शांत बैठी थीं। उनके पति खुद पर काबू नहीं कर पा रहे थे। वे डिप्रेशन में चले गए। बीमार पड़ गए। उन्हें पीलिया हो गया। दिन पर दिन उनकी तबीयत बिगड़ती गई। अगस्त 2014 में वे गुजर गए।’

द्रौपदी मुर्मू के पति और दोनों बेटों की प्रतिमा।
गृहमंत्रालय से फोन आया- अपना बायोडेटा भेजिए… और द्रौपदी झारखंड की राज्यपाल बन गईं
संदीप साहू लिखते हैं- ‘पति की मौत से कुछ महीने पहले द्रौपदी ने रायरंगपुर से बीजेपी की सीट पर विधानसभा चुनाव लड़ा, हालांकि वो हार गईं। हार के बाद उन्हें जिला अध्यक्ष बना दिया गया। लगातार एक के बाद एक हादसों से गुजर रही द्रौपदी के पास एक दिन गृह मंत्रालय से फोन आया और उन्हें बायोडाटा भेजने के लिए कहा गया। उस अधिकारी ने वजह नहीं बताई, लेकिन द्रौपदी ने अनुमान लगा लिया था कि उन्हें निगम अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
आम लोग भी ऐसा ही सोच रहे थे। कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि द्रौपदी को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य बनाया जा रहा है। इसी बीच आईबी यानी इंटेलिजेंस ब्यूरों के अधिकारियों ने उनसे कॉन्टैक्ट किया। उन लोगों ने यह जांचा कि किसी थाने में द्रौपदी के खिलाफ कोई केस तो नहीं है।
आईबी के अफसरों ने द्रौपदी से कहा था कि जल्द बड़ी खुशखबरी मिलने वाली है। इसके बाद द्रौपदी को खबर मिली कि उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया जा रहा है। वे झारखंड की पहली महिला राज्यपाल थीं। पहली राज्यपाल, जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

19 मई 2015, झारखंड के राज्यपाल पद की शपथ लेती हुईं द्रौपदी मुर्मू।
राज्यपाल रहते हुए 2016 में उन्होंने अपने ससुराल के गांव पहाड़पुर में छठी से दसवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए स्कूल खोला। इस स्कूल का नाम पति और दोनों बेटों की याद में रखा।
‘श्याम लक्ष्मण सिपुन मेमोरियल स्कूल’। स्कूल के लिए उन्होंने 3.2 एकड़ जमीन दान कर दी थी। झारखंड के राज्यपाल का कार्यकाल पूरा करने के बाद जुलाई 2021 में द्रौपदी अपने शहर रायरंगपुर लौट आईं। वो अपने छोटे भाई तारानिसेन और भाभी शुकरी के साथ रहने लगीं।

ओडिशा के मयूरभंज जिले के पहाड़पुर गांव में एसएलएस स्कूल है। अपने पति और दोनों बेटों की याद में द्रौपदी मुर्मू ने ये स्कूल खोला था।
जब मेडिकल दुकानदार के पास फोन आया- द्रौपदी जी से बात कराइए, PM लाइन पर हैं
21 जून 2022 की बात है। द्रौपदी मुर्मू के निजी सहायक रहे बिकाश महांता बताते हैं- ‘रात करीब साढ़े आठ बज रहे थे। मैं अपनी मेडिकल दुकान पर था। तभी एक फोन आया- द्रौपदी जी से बात कराइए। प्रधानमंत्री जी उनसे बात करना चाहते हैं।
मुझे बस पांच मिनट दीजिए, मैं फटाफट उनके घर पहुंचता हूं। एक हाथ से कान पर फोन लगाए मैंने उस व्यक्ति को जवाब दिया और बाइक स्टार्ट करके द्रौपदी के घर के लिए रवाना हो गया, जो वहां से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर था।
मैं द्रौपदी जी के घर के बरामदे तक पहुंचा था कि फोन की घंटी दोबारा बजी। जल्दी बात करवाइए, प्रधानमंत्री जी लाइन पर हैं। मैंने कहा- हां सर मैं पहुंच गया हूं, बस दो मिनट दीजिए।
हमेशा की तरह द्रौपदी जी रात का खाना खाकर सोने की तैयारी कर रही थीं। मैंने उन्हें फोन देते हुए कहा- प्रधानमंत्री जी आपसे बात करना चाहते हैं। फोन रखने के बाद द्रौपदी जी ने जो कहा वो इतिहास बन गया। उन्होंने कहा- ‘मुझे एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जा रहा है।’
दरअसल, उस रोज द्रौपदी मुर्मू के घर की बिजली चली गई थीं। पीएमओ का फोन उन्हें नहीं लगा। इसके बाद उनके निजी सहायक रहे बिकाश को फोन आया। राष्ट्रपति बनने के बाद एक इंटरव्यू में द्रौपदी मुर्मू ने इस किस्से का जिक्र करते हुए बताया- ‘प्रधानमंत्री की बात सुनकर मेरे हाथ-पैर सुन्न रह गए। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दूं।’

25 जुलाई, 2022, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संसद के सेंट्रल हॉल में शपथ ग्रहण समारोह के बाद सलामी लेती हुईं।